Tuesday, October 14, 2014

मीणा लोक साहित्य --1

       ----- ( होली गीत)------
ये फागुन के महिने में रात्रि के समय कुंवारी लड़कियों द्वारा गाया जाने वाला लोकनृत्य गीत (धोड़या गीत) है । इसमें गीतों के साथ साथ नृत्य भी होता हैं। इसमें लड़कियां 10-15 की टोली बनाकर दो समूहों में विभक्त हो जाती हैं। एक समूह की लड़कियां गाती हुई दूसरे समूह की तरफ़ तेजी से दौड़ती हुई जाती है तथा यही पुनरावृति दूसरे समूह द्वारा दोहराई जाती है।
इन गीतों का प्रतिपाद्य हंसी मजाक तथा साधारण से परिवर्तन के साथ दैनिक जीवन की घटनाओं पर आधारित होता है । इन गीतों को रात्रि के समय गाया जाता है । यहाँ कुछ स्फुट उद्धरण प्रस्तुत हैं -
होड़ी मंगड़े जब बूंद पड़े
सम्मत को घाटो नहीं मैया । होड़ी -----
आदिवासी समाज प्रकृति आधारित है अत: उसमें शकुन भी प्राकृतिक घटनाओं को ध्यान में रखकर समझे जाते हैं । मीणा अंचल में यह मान्यता है कि होली दहन के समय यदि बूंद पडती है तो उस वर्ष वर्षा का अभाव नही रहता ।
भाई रे मीणा गांगड़दी,
तैने बिन्या लगन होड़ी मंगड़ादी । भाई रे------
इस गीत में मनुवादी विचारधारा का तिरस्कार प्रतिफलित हुआ है । आदिवासियो के अपने नियम होते है उसी के आधार पर वे त्यौहार आदि को मनाते हैं।
नौ बीघा आरेड़,
बकरिया खा गई बूचा कानन की । नौ ---------
मीणा अंचल में पहले अरहड की खेती बहुत होती थी, अब इसमें कमी आई है । उसकी रखवाली की तरफ इस गीत में इशारा किया गया है ।
नौ मण जीरो नौ सै को,
मेरा जेठ बिन्या कुण बेचेगो । नौ -----------
जीरा भी पहले यहां की एक मुख्य फसल के रुप में किया जाता था जो सबसे मंहगा बिकता था । इस गीत में बताया गया है कि मंहगी वस्तु का बेचान जिम्मेदार व्यक्ति ही कर सकता है जो हिसाब किताब की समझ रखता हो । यहां घर मे जेठ को जिम्मेवार और घर का बडा होने के कारण यह अधिकार सिद्ध होता है ।
भाई रे छोरा पाखण्डी,
बाड़ा में खाय कुलामंडी । भाई --------
यह वाचाल किस्म के व्यक्ति की चारित्रिक गतिविधियो का अंकन ही इस गीत का प्रतिपाद्य रहा है ।
होड़ी आई होड़ी आई ढ़प ल्यादे
ई तो होगो पुराणों मैया और ल्यादे।
ग्राम्य अंचल में होली के उल्लास में ढप और चंग के साथ गायन की परिपाटी रही है ।
चणां कटै लम्बी पाटी में
भरल्या रै मोटर गाड़ी में ।
मीणा अंचल में पहले चने की फसल फरपूर मात्रा में होती थी । साथ ही इस गीत में कृषि मे आए मशीनीकरण के प्रयोग का भी पता चलता है ।
भाई रे छोरी मैणा की,
भरल्याई रे थाडी गहणा की ।
आभूषणों का शौक आदिवासी स्त्रियों में ज्यादा रहा है । चांदी और सोने के विभिन्न आभूषण शादी में भी दिये जाते हैं । अच्छी फसल होने पर आभूषण बनवाने के अनेक उदाहरण मीणा लोक गीतों मे मिलते है ।
बणियों करै हिसाब,
बरेणी दारी कूदी कूदी डोले गिराडा में।
बैसाख में फसल के पैदा होने पर किसान बनिये का हिसाब करता है साथ ही कुछ छूट करने की भी विनति करता है, परन्तु बनिया की स्त्री अपने कंजूस स्वभाव के चलते यह छूट प्रदान करने नहीं दे रही । इसी प्रवृत्ति को इस गीत में दर्शाया गया है ।
नया बैल की जौतन सू
मेरो गोज्यो भरगो लोटनसू ।
आदिवासी सदैव से कठोर परिश्रम से कृषि कार्य करता रहा है । खेत को जोतने के लिए 1980 से पहले हल-बैल ही प्रमुख साधन थे । नया बैल अधिक जुताई करता है जिससे ज्यादा जमीन जोती जा सके । इसके फलस्वरुप फसल में भी बढोतरी होती थी । इसी मनोदशा का वर्णन इस गीत की विषय वस्तु है ।

( साभार -- विजय सिंह मीणा जी की पुस्तक मीणा लोक साहित्य एवम संस्कृति से )


{एक टेंट में सेर में चणा सम्वत को धोखो नहीं मय्या..
रंडवो करे मजाक बरेणी दारी कूदी कूदी डोले गिराडा में...
होडी आइ होडी आई गुड ल्यादे, कंजी कू थोडी खड ल्यादे....
पलक्या पै पग जब दीज्यो, खंगवाडी मोय घडा दीज्यो....
दो भैसन का धीणा सू, मत भिडज्यो मोटा मीणा सू...
टोडा सु गूंजी ल्यावेगो, म्हारो बलम आज नही आवेगो ...
को जाऊ मैया कलवा कै, म्हारो जातेई हलवा कर देगो ...
को जाऊ मैया भैसन पै, म्हारी टुंडी देख पडो रडके...
सुण रै छोरा सासू का,  घडवा दै .. घडवा दै कुडंल कानन का..
पीलू को मचौल्यों मेरी जीजी क् सू ल्याई ...होलै होलै रै बलम न तोराळ्यो..
ढांढयोण को पेड़ महारा बाड़ा में दिन्गा दिन्गा रै ननद का गौणा मे..
दौरानी पै तीन चुटीला , एक दुवा दै देवरिया ..
याको बाप करे चुगली, मत बैठे मोरया या टुगली...
हलवो खायो रंडवा को, मोय लोभ दे दियो खंडवा को.....
गिर्राजी की जय बोले, रंडवा की नीत किस्यां डोले....
रंडवा की छान पै बिलाई डोले , रन्द्वो जाणे लुगाई डोले..}

मीणा लोकगीतों की मूल परम्परा मौखिक है, इसीलिए शास्त्रीय दृष्टि से इनके शैल्पिक गठन का निश्चित प्रारुप नहीं बन पाया है । इसके बावजूद यह सर्वाधिक जीवंत और हरियाली विधा है, जिसमें हजारो वर्षों का हमारा सांस्कृतिक इतिहास सुरक्षित है । इन्हीं के कारण गतिशील परम्पराएं व संस्कार आज भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं । सनातन संर्घष और जीवट-जिजिविषा का ऐतिहासिक बीजभूमि का यह उर्वर दर्शन अपने आप में लोक जीवन का इतिहास है । इन लोकगीतों की भाषा, भाषा-शास्त्रियों के लिए अथाह सागर है जिसे बार-बार मंथन प्रक्रिया से गुजरना है । इन गीतों का एक-एक शब्द अपने आप में बहुत गहरे और गूढ अर्थ समेटे हुए है । नवीन शब्द-गठन, नये प्रतीक और सीधे सहज सरल भावों का यह भव्यतम कुबेर कोष है ।


Monday, October 13, 2014

मीणा लोक साहित्य --2

----कार्तिक स्नान गीत-----

मीणा अंचल में कार्तिक के महिने में प्रात: चार-पांच बजे उठकर स्नान कर देवी-देवताओं को जलअर्पण व पूजा अर्चना को शुभ माना जाता है । इसे पुरुष व महिला, बूढ़े एवं बच्चे सभी करते हैं ।

स्त्रियां एवं नवयुवतिया प्रात: ब्रह्ममुहुर्त में उठकर गांव के कुऐ पर जाकर स्नान करती हैं तथा इस समय गंगाजी व अन्य देवताओं से संबंधित गीत गाये जाते हैं । प्रात:काल की बेला में ये गीत इतने मधुर लगते हैं कि वातावरण बड़ा ही मनमोहक हो जाता हैं । इन गीतों को स्त्रियां बड़े ही ऊंचें सुर और मधुर आवाज में गाती हैं । इन गीतों से मन को विशिष्ट प्रकार की शांति मिलती हैं तथा दिन भर तरोताजगी महसूस होती हैं ।

गंगाजी के घाट पै सासू कातक न्हावै, हो राम…..

सासू कातक न्हावै हो राम

सुसरो सुखावे धौड़ी धोवती,

सासू केस सुखावे हो राम, सासू केस सुखावे

इन गीतों में गंगास्नान महात्म्य, नाम स्मरण की महिमा,देवताओं का सुमरण आदि पर विशेष बल दिया जाता है । राम-सीता की कथा पर आधारित गीतों एवं कृष्ण के चीरहरण आदि कथाओं पर आधारित गीतों की इनमें भरमार रहती हैं । कृष्ण द्वारा गोपियों का चीर चुराने पर आधारित यह गीत -

गंगाजी के घाट पै गूजरी कूदर न्हावै ।

चीर उतार कदम पै रख् दियो न्हावे दे दे ताड़ी,

आगे कान्हा गाय चरावे लेगो चीर हमारी,

चीर तुम्हारी जब ही मिलेगी जल से हो जा न्यारी,

चांद सुरज दौनू लाजन मारया धरती बोजन मारी।

इसी क्रम में सीता जी के जन्म आदि घटनाओं पर अवलम्बित इस गीत की धारा बड़ी ही मनोहारी है

गंगाजी के घाट पै एक कन्या तो जनमी हो राम

कन्या तो जन्मी मौज की सीता नाम धरायो, हो राम

नाम धरायों मौज को वाको धनुष बणायो, हो राम

धनुष ने तोड़े सीता नै ब्हावे, उतो राम बतायो, हो राम

रावर्ण सिर का घुड़ लिया वाकी आंगड़ी तो आगी, हो राम

नाम लियो भगवान को दशरथ जाया ने तोडयो, हो राम

धनुष तो तोड़यो राम ने वाकू सीता तो ब्याही, हो राम

इस गीत में धनुष भंग का वर्णन किया गया है तथा ईश्वर के नाम को ही सर्वोपरि बताया गया है । यहाँ रावर्ण की असफलता और सीता का राम के साथ विवाह का आंचलिक बोली में वर्णन एक अद्भुत रोमांच पैदा करता है ।प्रत्येक पंक्ति के अंत में राम के नाम के स्मरण को प्रश्रय दिया गया है ।


"जेसू न्हाऊँ रे जीजा कातिक ,मिल जाय तौ सर को भरतार..""कातिक ज्यों न्हावे ज्यों कलर चढें पतली सी छोरी पे ..""कातीक नाहाबा सु होगो र गोरो डील छोरि को .."

फल कातक को लेगो. रोडू छोंकडा नीचे...कातक न्हाबा सु केशन्ती , मिलेगो ्भरतार जीजो सो...कातिक न्हावे तो गोरन्ता, आजा कुआ का ढाणा में."कातिक नाही र भारो दुःख पाई र पाती रोड्लो आग्यो ।

मुढ़ा सु भी को बोल सासु को जायो जायो ।।"

"कातिक नाहव मंदर ढोक ,डिया की शुभकामना माग ।

काई चक्कर भायेली रोजीना ई आदी प जाग ।।"

लोकसाहित्य में लोक जीवन के अवलोकन के लिए यह निहायत जरुरी है कि हम उस लोकजीवन के प्रति सहज संवेदनशील हों । इन गीतों की भाषा शिष्ट एवं साहित्यिक ना होकर जनसाधारण की भाषा है और उसकी वर्ण्य-वस्तु लोक जीवन में गृहीत चरित्रों, भावों और प्रभावों तक सीमित है । इन कविताओ की जमीनी जिंदगी का वृक्ष की साख जैसा फैलाव है और उस पर निस्तब्ध पंख समेटे बैठी हुई एक उजले पंख वाली गोलमोल चिडिया के सादृश्य दिखने वाले ये गीत अंतर्मन की मुस्कान हैं ।

(साभार -  पुस्तक "मीणा लोक साहित्य एवम संस्कृति" से )


शिकार


अंग्रेजों के ज़माने की बात है.जंगलात महकमा के रेस्ट हाउस में एक अंग्रेज प्रवास कर रहा था. उसका शौक था शिकार करना और करवाना. एक आदिवासी उसका शौक पूरा करने के लिए रोजाना किसी न किसी जंगली जानवर का शिकार करके लाता था. कितने खतरनाक जानवर का शिकार वह आदिवासी करके लाया इस आधार पर अंग्रेज अफसर उस आदिवासी को ईनाम देता था. अंग्रेज अफसर शिकार किये वन्य जीवों की चीरफाड़ करने के पश्चात् उनके सिर को रेस्ट हाउस की दीवारों पर सजा दिया करता था.

एक दिन वह आदिवासी शिकार करके लाया और अंग्रेज अफसर को कहने लगा, 'हुजूर, आज मैंने सबसे खतरनाक जानवर का शिकार किया है. इसके सर को गर्दन सहित कौन सी दीवार के किस हिस्सा में टांगोगे ?' 

'पहले यह तो बताओ भई कि शिकार है कहाँ? मैं देखूं तो सही.'

'शिकार यह रहा.' बोरी को खोलकर शिकार बताते हुए आदिवासी ने कहा.

अंग्रेज अफसर शिकार देखते ही चौंका. शिकार के रूप में एक मनुष्य की लाश थी.

'तूने यह क्या गज़ब किया?' अफसर ने पूछा.

'माई बाप, गज़ब मैंने नहीं किया, गज़ब तो इस जानवर ने किया है. इस दरिन्दे ने मेरी बेटी के साथ बलात्कार करने के बाद उसका गला घोंट दिया. किसी जंगली जानवर ने आज तक ऐसा नहीं किया. इस जंगल में इस जैसा खतरनाक जानवर मैंने जीवन में पहले कभी नहीं देखा.


बेटी


आज हीरोपंती देखी, बहुत लोगो ने कहा अच्छी नहीं है,
मैंने सोचा एक बार देख
ली जाए क्या बुराई है,

फिल्म में हीरो -
हीरोइन की एक्टिंग का तो नहीं पता मुझे

लेकिन पूरी फिल्म मुझे विलेन
यानी की लड़की के बाप के कंधो पे टिकी लगी,
लड़की के बाप का रोल प्रकाश राज जी ने
बहुत ही बखूबी निभाया है, पहले भी ऐसे
विषयों पे फिल्म बन चुकी है,
जहा लड़की का बाप विलेन रहता है, मैंने
देखी भी होगी पर याद नहीं या उस समय
इतनी समझ नहीं थी.

लेकिन आज मैंने उस दर्द को महसूस किया,
कि जिस बाप की लड़की घर छोड़ कर भाग
जाए तो उस पर क्या बीतती होगी, फिल्म में
२० दिनों तक लड़की का बाप
अपनी लड़की को इसी आस में
तलाशता फिरता है
कि मेरी बेटी अपनी मर्जी से नहीं भागी,

उसे
वो लड़का भगा के ले गया, लेकिन जब वो उस
लॉज में जाता है जहा उसकी बेटी रुकी थी, उस
कमरे की हालत देख कर उसे समझ आ जाता है
की उसकी बेटी अपनी मर्जी से भागी थी, तब
वो टूट जाता है,

वह हीरो से कहता है कि कैसे
उसने २० साल अपनी बेटियों को अपनी जान से
भी ज्यादा प्यार किया, उन्हें
पढाया लिखाया, हर सुख दिया, और जब एक
दिन उसे उसकी वही बेटी एक बस में दिखती है
तो उस बस के पीछे भागता है पागलो की तरह

और बेटी बस से उतर कर जब ये कहती है कि आप
लोग क्यूँ कुत्तो की तरह पीछे पड़े है तो वो और
भी टूट जाता है.

बेटी और बाप का रिश्ता बहुत ही अलग
होता है, शुरू से देखा जाता है बेटी माँ से
ज्यादा अपनी पापा से अटैच होती है,

जब
स्कुल में कोई बच्चा उसे तंग करता है
तो वो कहती है कि मै अपने पापा से शिकायत
करुँगी, बाप अपनी बेटी को परछाई की तरह
रखते है, उस की हर तरह से सुरक्षा करते है,
लेकिन वही बेटी जब अपने बाप की इज्जत
नहीं करती, उसके प्यार को भूल जाती है

तो उस बाप को बहुत दुःख होता है,
मै ये भी नहीं कह रही की प्यार करना गलत
है, लेकिन आप किसी के साथ भाग कर
शादी करो इसके पहले अपने माँ बाप के बारे में
जरुर सोचो, आप उन्हें बता सकते है,
वो कभी भी आपका बुरा नहीं चाहेंगे, उन्होंने
हमसे ज्यादा दुनिया देखी है,

उन्हें पता है
की हमारा अच्छा क्या है और बुरा क्या है..